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तुम में है / सुदर्शन रत्नाकर

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तुम में है
सागर की गहराई
आसमान की ऊँचाई
पहाड़ की अटलता
धरती-सी सहनशीलता
सूर्य की उष्णता
दुर्गा की शक्ति
सतत बहते झरने की निर्मलता
फिर कहाँ से आई दुर्बलता।
और कहलाती हो अबला