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मन-प्राण समान / कविता भट्ट

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[11/06, 2:34 pm] Shail putri:
1- हम उलझे रहे...

वे खोए रहे नित व्यापार में,
हम उलझे रहे निज हार में।
वह कोंपल बोलो कैसे खिले?
जिसे- झुलसाया गया बहार में।

युग परिधि व्यस्त उपहार में,
मन रमता ही नहीं उद्गार में।
प्रेम की राहें अब कोई चुने न,
मृग-जीवन बीता पल चार में।

डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
[11/06, 2:35 pm] Shail putri:
2-आलम्बन
डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'


स्मृतियों के दीन स्तम्भ अब तक आलम्बन देते।
मधुर तुम्हारे संस्मरणों को अब तक जीवन देते।

पीड़ा से गागर भर मौन- छलके अश्रु रुदन देते।
मानस पर छा जाते तुम कपोलों को चुम्बन देते।

आने के पदचाप प्रिये! भावों को यों स्फुरण देते।
विरह-श्वास-निःश्वास मिटा आशा-आकुंचन देते।

मिलन-क्षणों के मेले वो मन को आमन्त्रण देते।
जग की भूल गयी सुध जब तुम आलिंगन देते।
-0-
11 अपराह्न-16-06-2021 (हाइकु-प्राण)
1
1
ना ऑक्सीजन;
प्राण- अनन्त ऊर्जा
ब्रह्माण्डीय है।
2
निश्चेतन मैं
ऑक्सीजन ही नहीं
प्राण चाहिए।
3
मैं काया- मात्र
तुम प्राणिक ऊर्जा
ओ! प्रियतम।
4
ओ! मनमीत
बाँसुरी- सी बजा दे
फूँक तू प्राण।

5
जीवन शेष-
तू देगा प्राणवायु
पीपल बन।
6
धरा के प्राण
अम्बर में बसते
किन्तु विलग।
7
पीपल छाँव
प्राण बसते जहाँ
कहाँ है गाँव।
8
प्राण विलग
कामनाएँ सिसकी
काया निढ़ाल।
9
जब भी जागूँ
मन-प्राण समान
तुमको पाऊँ।
10
घाटी- सी देह
नदी प्राण -सी बहे
गाती ही रहे।
11
प्राण धरा का
सागर का जीवन
तू प्रेमघन!
12
कपाट खोलो
प्रिय के पदचाप
प्राणों से लौटे।
13
होता धागा जो
ये प्राणों का बन्धन
मैं तोड़ देती।
14
जल में बसे
मीन विलग हुई
प्राण निकसे।