भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत / निमिषा सिंघल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:05, 18 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निमिषा सिंघल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रेत पी जाता है नेत्रों से छलका दुख,
ऊपर से बेअसर
भीतर नम।
रेत-सी कहीं तुम भी तो नहीं?
छुपा लो!
अच्छा है छुपाना दुख।
पर नमी बरकरार रहे!
ताकि तेज आंधियाँ
उड़ा न लें जाये तुम्हें
या ढह न जाओ तुम
रेत के टिब्बे सी।