एक शाम
झील किनारे कुछ पंछी लौट रहे थे
चाँद की राह तकता एक पथिक
देर तक वहाँ खड़ा रहा
उसकी आँखों और आसमां का रंग
एक-सा था!
एक डाल पर
उसी शाम
आस का एक पुल बँधा था
देखने वालों को मालूम है
रात उसी राह चलकर
शाम के गले मिली थी!
एक शाम
झील किनारे कुछ पंछी लौट रहे थे
चाँद की राह तकता एक पथिक
देर तक वहाँ खड़ा रहा
उसकी आँखों और आसमां का रंग
एक-सा था!
एक डाल पर
उसी शाम
आस का एक पुल बँधा था
देखने वालों को मालूम है
रात उसी राह चलकर
शाम के गले मिली थी!