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क्रन्दन / सुदर्शन रत्नाकर
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पवन बही
जल को छू लिया
लहरें उठी तो तट को छू लिया
पर वियोगी तट ने
कभी नहीं छुआ
सहयोगी तट को
दोनों का क्रन्दन गूँजता है
नीरव निशा में।