भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यात्रा / वास्को पोपा / सोमदत्त

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 23 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वास्को पोपा |अनुवादक=सोमदत्त |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यात्रा पर हूँ मैं
और राजमार्ग भी है यात्रा पर

उसांसें भरता राजमार्ग
गहरी अन्धेरी सांस लेता हुआ
मेरे पास वक़्त नहीं आह भरने का
मैं बढ़ता जाता हूँ

लड़खड़ाता नहीं अब मैं
राजमार्ग पर ऊँघते पत्थरों पर
मज़े से चलता हूँ

बेकार हवा के झोंके अब रोक पाते नहीं
मुझे अपनी चटर-पटर से
मानो देख ही न पा रहे हों मुझे
ज़्यादा तेज़ी से बढ़ता हूँ

मेरा मन बताता है कि छोड़ आया हूँ
कुछ जानलेवा, कुछ हलके-फुलके दर्द
पीछे छूट गई घाटी की तलहटी में

सोचने का समय नहीं अब मेरे पास
मैं यात्रा कर रहा हूँ

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त