भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मास्क / पंछी जालौनवी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:32, 24 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंछी जालौनवी |अनुवादक= |संग्रह=दो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पहले नज़रों से अपनी
मेरे चेहरे पे
मास्क बुनता है
फिर जो मैं कहता हूं
उन बातों को
ना समझता है, ना सुनता है
मेरे दिलमें
कुछ दिनों से
वो जो रहता है
बला का ज़िद्दी है
ख़ुद बाहर नहीं आता कभी
मुझे अंदर बुलाता है
प्यार करता है इशारों से मुझे
और मास्क के अंदर
मुस्कुराता है ॥