भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उजाला तुम्हीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:21, 24 जून 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
मैं सिर्फ दीप
तुम्हीं बाती व नेह
उजाला तुम्हीं।
2( 23-6-21)
1
युगों- युगों से
किसकी है प्रतीक्षा
व्यथित मन!
2
सूना है पथ
खंडित मनोरथ
आ भी तो जाओ!
3
पत्ते खड़के
हवा का झोंका बन
क्या तुम आए?
4
धरा -सा मन
उद्ग्रीव हो तकता
बाट तुम्हारी।