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शरद पूनम के चांद / गीता शर्मा बित्थारिया

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दिव्यांग
यूं समझ लो
जैसे आसमान की गोद में
खेलते धरती सूरज चांद

जैसे सूरज अपनी
थोड़ी सी रश्मियां
बांट लेता है चाँद के साथ
बिना किसी दान अहसान
या कमतरी भाव
वो प्रकाश पुंज है
जानता है
बांटने से कहां
कम होते है उजास
और पुलकित चांद
चमक उठता है अपने
सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ
यूं जैसे कि यह उसी का
अंतर्नहित प्रकाश

जो चाँद घूम रहा है
धरती के चारों ओर
पाना चाहता है बस
थोड़ा प्यार और सम्मान
अपने इर्द गिर्द
घूम रहे उपग्रह पर
बिना किसी उपकार
अनुग्रह भाव
वो समर्थ है वो रखती है
उसका मान सम्मान
तय कर देती है
अपनी हर खुशी में
उसका भी स्थान
जैसे धरती पर
मनाए जाते हैं
चांद को केंद्र
बना कर
सारे त्यौहार

अगर बन सको तो
अवश्य बनना
किसी प्रकाश की
कमी से जूझ रहे
चाँद के लिए
सूरज धरती और आकाश
तुम्हारे स्नेह का नर्म स्पर्श
तुम्हारी संवेदना
सम्मान से थामा हाथ
भर देगा उसमें प्रकाश
वो जगमगाएगा जैसे
आकाश में चमकता है
कोई शरद पूनम का चांद
तुम्हारी उपस्थिति
उसे दिलाए प्यार से
बेहतरी का अहसास
थोड़ा सा दर्द बांट लो
और मना लो अपना
हर त्यौहार
ऐसे ही किसी
चांद के साथ