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तुम्हारी पीठ पर बैठे हैं, समझदार हैं वो / फूलचन्द गुप्ता

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तुम्हारी पीठ पर बैठे हैं, समझदार हैं वो
नहीं है खैर, जो बोले कि गुनहगार हैं वो

क़बर को खोदकर लाएँगे लाश झूठों के
कहेंगे आपसे, कौमों के कर्णधार हैं वो

कि कू-ए-दार<ref>फाँसी का रास्ता</ref> तक आएँगे जो अहबाब<ref>मित्र, दोस्त, प्रियजन</ref> होके
अजी, मक़तूल<ref>क़त्ल होनेवाला शख़्स</ref> की गर्दन के ख़रीदार हैं वो

कहाँ लिबास में रहना है, शर्मसार होकर
कहाँ उतारकर जाना है, ख़बरदार हैं वो

फ़सल के नाम पर बंजर ज़मीन कर देंगे
बताया जाएगा सब्ज़ा के तरफ़दार हैं वो

शब्दार्थ
<references/>