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नाविक ’विद्रोहियों’ पर बमबारी : बम्बई १९४६ / शमशेर बहादुर सिंह

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अल्जीरियाई वीरों को समर्पित, 1961

लगी हो आग जंगल में कहीं जैसे,
हमारे दिल सुलगते हैं ।

हमारी शाम की बातें
लिए होती हैं अक्सर ज़लज़ले महशर के; और जब
भूख लगती है हमें तब इंक़लाब आता है ।