भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पूरब की धुन / अफ़अनासी फ़ेत / वरयाम सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 16 अक्टूबर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अफ़अनासी फ़ेत |अनुवादक=वरयाम सिं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बताओ मुझे, मेरे प्यारे दोस्त !
किससे तुलना हो सकती है
मेरी और तेरी ?
दो अश्व हैं हम
नदी में फिसलते
कच्ची डोंगी के दो खेवनहार
तंग छिलके में सिकुड़े दो कण
जीवन के फूल पर बैठी दो मधुमक्खियाँ
ऊँचे आकाश में दो तारे !