भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्थान्विति / शशिप्रकाश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:43, 16 जनवरी 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशिप्रकाश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हक़ अदा करना था ज़िन्दगी का
सो कविता से अलग होना हुआ
अप्रत्याशित,
फिर-फिर मिलने के लिए I
छाती पर लदा हुआ
घुटन और पराजय का बोझ
एक सड़े हुए काठ के कुन्दे की तरह I
उसे उतार फेंकने की जद्दोज़हद
ले गई लोगों तक
जो बोझ ढोते थे जीने की तरह I
वहाँ कविता थी जो ख़ुद
ज़िन्दगी का हक़ अदा कर रही थी I