भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अर्थों की कनागत / रेखा राजवंशी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:09, 28 जनवरी 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा राजवंशी |अनुवादक= |संग्रह=कं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कंगारूओं के देश में
तुम आए
तुम्हारा स्वागत ।

भावों को शब्द मिले
हुए दूर कई गिले ।

सूने मन आँगन के
बिरवे में फूल खिले ।

बादल के आँचल में
मेघों के मन मचले ।

तुम आए तो जैसे
सूरज ने रुख बदले ।

रीता पल बुनने लगा
अर्थों की कनागत ।

कंगारूओं के देश में
तुम्हारा स्वागत ।