भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा सच अपना है / संतोष अलेक्स

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 31 मार्च 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अचानक लाईट चली गई
मोमबत्‍ती जलाने की कोशिश में
हाथ जल गया  

मोमबत्‍ती की रोशनी में
हाथ की छोटी, बड़ी
हल्‍की, गहरी रेखाएँ दिखाई दीं
जिनमें यादें पिरोई हुई थीं

बीज की
मिट्टी की
गिल्‍ली डंडा खेलने की
नन्‍हें की स्निग्‍ध स्‍पर्श की
पहली बार झूठ बोलने की
विदा करने पर बहन के गर्म
आलिंगन की
टूटे खपरैल की  

हथेली की रेखाएँ  
शायद बढी हों या
धुंधली हो गई हों
मगर घटनाएँ सच हैं  

इसे औरों के संदर्भ में
परखना मत
चूंकि मेरा सच अपना है