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लोकतन्त्र / लैंग्स्टन ह्यूज़ / अमर नदीम

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लोकतन्त्र नहीं आएगा
आज, इस बरस
या कभी भी
समझौते और ख़ौफ़ से ।

मुझे भी उतना ही हक़ है
जितना उस दूसरे शख़्स को
कि खड़ा रहूँ अपने दो पैरों पर
और रहूँ मालिक अपनी ज़मीन का ।

मैं उकता गया हूँ यह सुनते-सुनते,
कि चलने दो चीज़ों को उनकी अपनी रफ़्तार से ।
कल एक नया दिन होगा ।
मुझे आज़ादी अपने मरने के बाद नहीं चाहिए ।
न ही आने वाले कल की रोटी से
मैं आज जी सकता हूँ ।

आज़ादी
एक कठोर बीज है
जिसे सख़्त ज़रूरत में ही बोया जा सकता है ।
मैं भी यहीं रहता हूँ ।
मुझे भी आज़ादी चाहिए
तुम्हारी ही तरह ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अमर नदीम
 —
लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
       Langston Hughes
             Democracy

Democracy will not come
Today, this year
Nor ever
Through compromise and fear.

I have as much right
As the other fellow has
To stand
On my two feet
And own the land.

I tire so of hearing people say,
Let things take their course.
Tomorrow is another day.
I do not need my freedom when I'm dead.
I cannot live on tomorrow's bread.

Freedom
Is a strong seed
Planted
In a great need.

I live here, too.
I want freedom
Just as you.

Langston Hughes
Friday, January 3, 2003