परंतु चिंतन
बरबादी के ऐसे
समीकरणों को
कतई स्वीकारेगा नहीं
क्योंकि उसकी आस्था
हमेशा
मानवीय गहनता में होती है
न कि मानव के
उथले विचारों में।
शायद इसलिये ही
कबीर जुलाहा होते हुए भी
सबसे धनाढ्य था, है और रहेगा।
इससे पहले कि
बरबादी के समीकरण
जिंदगी का
हिस्सा बन जाएँ
चिंतन उन्हें
अपनी रौशनी में
लुप्त कर लेना चाहता है।
परंतु उसका कालापन
आसानी से
दिखाई नहीं देता
वह तो
सुनहरे सपनों का
प्रतिबिंब है
वैसा ही
जैसा स्वरूप है
मृग-तृष्णा का।