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आस्था - 71 / हरबिन्दर सिंह गिल

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जैसे
हर समुद्र में मिलते हैं मोती
मुझे भी
मानवता को
सजाने के लिये
प्रकृति में जाना होगा
जहाँ फलों को
कागजों से
सजाने का रिवाज नहीं है।

शायद
यही कारण है, मानव
महसूस नहीं कर पा रहा है
आस्था में
चढ़ने वाले फूलों में
खुशबू है भी या नहीं
क्योंकि
उसकी महक तो
प्लास्टिक के आवरण में
बंद होकर रह गई है।

जमाना था
आस्था को जीवंत
रखने के लिये
कांटों भरे पौधों से
चुन गुलाब के फूल
समझते थे
कृतज्ञ अपने को।