भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आस्था - 74 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 1 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
काश मानव समझ सकता
पत्थर जब
आग में झुलसता है
तपकर फटता है, हमेशा।
उसकी सिसकियां
सुनाई नहीं देतीं
सिर्फ धमाका होता है
जब फूटता है, तपकर वो।
मानव की याददाश्त
कितनी कमजोर है
इतनी जल्दी भूल गया है
जो हुआ था, धमाका
हिरोशिमा और नागासाकी में।