भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम आओ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:03, 8 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |संग्रह=निर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
|
तुम नव-नव रूपे एसो प्राणे !
नव रूप लिए प्राणों में तुम आओ ।
गन्धों रंगों गानों में
तुम आओ ।।
पुलकित स्पर्शों अंगों
तुम आओ ।
हो चित्त सुधामय हर्षित
तुम आओ ।।
इन मुग्ध चकित नयनों में
तुम आओ ।
ओ ! निर्मल उज्ज्वल कान्त ।
सुन्दर स्निग्ध प्रशान्त ।।
हो अद्भुत्त एक विधान
तुम आओ ।
सुख-दुःख जीवन मर्मों में
तुम आओ ।।
सब नित्य नित्य कर्मों में
तुम आओ ।
जब कर्म सभी हों पूरे
तुम आओ ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'पूजा' के अन्तर्गत 40 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)