भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सदा के लिए / दिनेश कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:59, 19 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संसार से सदा के लिए
लुप्त हो जाना एक रंग का
देखा हमने
उन आँखों में

सदा के लिए
मौन हो जाना एक शब्द का
सुना हमने उस कुहराम में

इन दिनों
रोज कोई न कोई प्रजाति
लुप्त हो जाती है सदा के लिए

ये दिन
उदय होने के पहले ही
अस्त हो जाते हैं।