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तुम्हारा प्रतिविम्ब / दिनेश कुमार शुक्ल

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तुम्हारा प्रतिविम्ब
झलका भर
जल में
तुम्हारा प्रतिविम्ब-
कि बज उठे
सरोवर में
जल-तरंग
जल-मृदंग

रात भर
लहरों का रास
चलता रहा

झूमें सारी रात वहाँ
लहरों के
जल-भुजंग जल-कुरंग जल-तुरंग जल-अनंग