स्टीफन हॉकिंग / दिनेश कुमार शुक्ल
खेल-खेल में प्यार और जिज्ञासा से
छू रहा होगा वह किसी खगोल पिण्ड को,
कोंचा-कांची से खीझ
भँभोड़कर नोच ले गया होगा
खगोल-पिण्ड
उसका चलना-बोलना
सत्य के निर्वात में खिंचता
घिसटता चला गया होगा वह
सरकता ब्रम्हाण्ड की फिसलन पर
जहाँ
वाणी अनिर्वच, देह अवयवातीत
विचार कल्पनातीत और
चीजें हो जाती हैं वर्णनातीत
चढ़कर काल की मीनार पर
देख लिया उसने एक
त्रिकाल और त्रिलोक को
और झेल गया एक साथ
विचार-प्रवाह की विद्युत के
लाखों किलोवाट-
झूल कर रह गया क्षत-विक्षत
उसके स्नायुतन्त्र का संजाल
तो भी चक्रव्यूह से
बचा कर उठा लाया वह
जीवट के कवच में
ज्ञान का निषिद्ध फल
किसी अगम-लोक से
बैटरी-चालित छोटी-सी कुर्सी पर
चलता भागता
यंत्र के सहारे कहता अपनी बात
मृत्यु को चुभोकर पेंसिल
बच कर भाग आया है वह
खिलन्दड़, अभी-अभी अध्ययन कक्ष में
गणित की वर्णमाला में
लिखता आदि-काव्य सृष्टि का
बीजाक्षरों की तूलिका से खींचता
चित्र प्राक्तत्त्वों के
उनमें भरता रंग अपने जीवन-रस से
अंतरिक्ष के बीहड़ मैदानों में
बीनता फिरता है वह
आदि-विस्फोटों के भग्नावशेष
अश्रव्य लुप्तप्राय क्षीण प्रतिध्वनियों को
साधता हृदय के सितार पर
रचता वह
रचना की सिम्फनी का निनाद
धूमकेतु-सी मँडलाती मृत्यु को
नकारता उपेक्षा से आश्वस्त है वह-
मृत्यु तो है काल के प्रवाह में
खेलती
एक जरा-सी भँवर
वह हिरावल है उनका
जो आएँगे जल्दी ही-
सृष्टि के प्यार में सराबोर
जो सुनेंगे
पास और पेड़ों की धड़कन
और खोज-खोज कर सुनेंगे
हवा में सोये हुए, खोये हुए
भूले-बिसरे नारे और प्रयाण गीत
वे होंगे
समुद्र जितने जीवन्त
पृथ्वी जितने समर्पित
अग्नि जितने कुशाग्र
और जल की तरह करुणामय