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याद-1 / वेणु गोपाल

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तपती और तपाती दोपहर में
    एक साफ़, ठंडे पानी से भरा हुआ लोटा,
उमस भरी रातों में बहुत-बहुत भटक लेने के बाद
     अपनी पसंद की ब्राण्ड वाली कोई सिगरेट
किसी अनजान शहर के किसी मोड़ पे
     अचानक दीख जाने वाला कोई लंगोटिया दोस्त चेहरा

ऎसी ही कुछ होती है तुम्हारी याद। और
     उसका वजूद महसूस करता हूँ मैं
           अपनी ही बेवज़ह मुस्कानों में।

रचनाकाल : 12 मई 1975