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ख़ुद अपनी ही प्रतीक्षा में / वेणु गोपाल
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अभी तो तुमने
अपने को
टास के लिए उछाला है--
अभी तो
हवा में हो
जब
ज़मीन पर गिरोगे
तो
पता चलेगा
कि कविता की जीत हुई है
या तुम्हारी?
तभी
तुम
ज़्यादा तुम हो पाओगे--
ज़्यादा फूल, ज़्यादा फ़सल, ज़्यादा नदी
ज़्यादा पेड़--
अभी तो
एक प्रतीक्षा हो
ख़ुद अपनी ही
जो तुम कर रहे हो--
अंधेरे में, अपने कमरे में, आइने के सामने,
हाथ में कलम लिए--
रचनाकाल : 12 जनवरी 1979