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पुन्य पंथ पर / प्रेमलता त्रिपाठी
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पुण्य पंथ कर मिटा विघन।
बाधा होती, नहीं लगन।
ओज भाव ले बढ़े जिधर,
शंख नाद की गूँज गगन।
राम-राम मय जीव सब,
संत भाव हो सदा मगन।
अंतस कटु क्यों, उथल पुथल,
शुद्ध रहे मन, शांत सुमन।
धर्म निकाय भरें न गरल,
देश प्रेम हो जीवन धन।