भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केसर चंदन से / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 24 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोहित प्रातः भानु लुभाता, वंदन से।
छिटकी आभा नभ तल शोभित, रंजन से। ।

सांध्यगीत रचती नवकलिका, मीत चली।
द्वार देहरी नैन निहारे, अंजन से।

ताम्रवर्ण अस्ताचल मोहक, सूर्य ढला,
अश्वारोही सत सतरंगी, स्यंदन से।

पुलक उठा गगनांचल जैसे, मत्त मगन,
संत दिगंतर सुरभित केसर, चंदन से।

हुई धूसरित सकल दिशाएँ, प्रेम सरस,
हंत पुकारे धेनु वत्सला, क्रंदन से।