भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुन कारी बदरी / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:39, 24 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुन कारी बदरी अरी!
क्यों है तू कटुता भरी।
छलका मधुरस प्यार दे,
तन मन की तू बावरी।
सूना सावन कर सरस।
मत खेले तू दाँवरी।
कटे सदा प्यारा सफर,
धरा सरस कर साँवरी।
काले मेघा से डरा।
विरहन को मत डाह री।
दुल्हन-सी यह हो धरा
चूनर धानी साज री
लोभी लंपट से बचा
प्रेम डगर की साध री।