भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तौर सिखाने होंगे / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:41, 25 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सींच दिये घर उपवन हमने, जब फूल सयाने होंगे !
महके जिनसे जीवन अपना,नित तौर सिखाने होंगे ।
तिनके तिनके जोडे़ जिसमें,शीतल छाया पाना ग़र,
बहती धारा अनुकूल चलें,सब स्वप्न सुहाने होंगे ।
,
खोट निकाले माटी रूँधे,तभी निखरते जीवन घट,
नाच रहा यों समय चक्र है,नित चाक चलाने होंगे ।
पौध लगायी कूटनीति की, डाले अनगिन रोडे़ जो,
व्यर्थ कल्पना सुख की चाहत,परिणाम पुराने होंगे ।
पानी सिर से ऊपर है ये,प्रेम मर्म कथ्य न केवल,
संक्रमित यहाँ जन जीवन को,अब हमें बचाने होंगे ।