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सुधा समान बोलिए / प्रेमलता त्रिपाठी

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अर्थ क्यों अनर्थ हो सुधा समान बोलिए ।
हो सुभाष आन हित सरस निधान घोलिए ।
 
ज्ञान के विकास से सुधर्म नीति मान से,
सत्य से डिगे नहीं हिये विधान तोलिए ।

हो सुहास सूर्य का निशा मिले घनी कहीं
राह कंटकों भरी सु चक्षु ज्ञान खोलिए ।

प्रीति मान पान का करें विचार ध्यान से,
दीन हीन क्यों बनें जियें अजान को लिए ।

भक्ति भावना सदा सप्रेम प्राण वान हों,
योग ज्ञान ध्यान से बनें युवान डोलिए ।