तुलनामुलक हाथ / निर्मलेन्दु गुन / सुलोचना वर्मा
तुम जहाँ भी स्पर्श करती हो वहीं है मेरा शरीर ।
तुम्हारे बालों को धो चुका जल तुम जहाँ भी
जुड़े को खोल मिलाती हो मिट्टी में;
मैं आकर पसारता हूँ हाथ, जलभार से नत देह और
आँखों की सामग्री लेकर लौटता हूँ घर, या नहीं भी लौटता हूँ घर,
तुम्हारी चतुर्दिक शून्यता को भरकर रह जाता हूँ ।
तुम जहाँ भी हाथ रखती हो, जहाँ भी कान से
उतारकर रखती हो झुमके, कण्ठ से उतारकर रखती हो हार,
वहीँ शरीर मेरा हो उठता है रक्तजवा फूल ।
तुम जहाँ भी रखती हो होंठ वहीं मेरा चुम्बन
तुम्हारे शरीर से प्रबल अयत्न से झड़ता है ।
मैं कीड़ा बनकर नेत्रमल की तरह
तुम्हारी इन आँखों की छाया में प्रतिदिन खेलता रहता हूँ,
प्यार करते हुए ख़ुद को रुलाता हूँ ।
तुमने साड़ी के आँचल से मुझे भगा दिया
मैं रथ छोड़ पथ पर तुम्हारे ही द्वेरथ पर बैठा रहता हूँ
तुम्हारी आशा में । तुम जहाँ भी रखती हो हाथ
मेरा उद्ग्रीव चित्र रहता है वहीं । मैं जहाँ कहीं भी
पसारता हूँ हाथ वहीं होती है असीम शून्यता, तुम नहीं होती ।
मूल बांग्ला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बांग्ला में यही कविता पढ़िए
নির্মলেন্দু গুণ
তুলনামূলক হাত
তুমি যেখানেই স্পর্শ রাখো সেখানেই আমার শরীর৷
তোমার চুলের ধোয়া জল তুমি যেখানেই
খোঁপা ভেঙ্গে বিলাও মাটিকে;
আমি এসে পাতি হাত, জলভারে নতদেহ আর
চোখের সামগ্রী নিয়ে ফিরি ঘরে, অথবা ফিরি না ঘরে,
তোমার চতুর্দিকে শূন্যতাকে ভরে থেকে যাই৷
তুমি যেখানেই হাত রাখো, যেখানেই কান থেকে
খুলে রাখো দুল, কন্ঠ থেকে খুলে রাখো হার,
সেখানেই শরীর আমার হয়ে ওঠে রক্তজবা ফুল৷
তুমি যেখানেই ঠোঁট রাখো সেখানেই আমার চুম্বন
তোমার শরীর থেকে প্রবল অযত্নে ঝরে যায়৷
আমি পোকা হয়ে পিচুটির মতো
তোমার ঐ চোখের ছায়ায় প্রতিদিন খেলা করে যাই,
ভালোবেসে নিজেকে কাঁদাই৷
তুমি শাড়ির আঁচল দিয়ে আমাকে তাড়িয়ে দিলে
আমি রথ রেখে পথে এসে তোমারই দ্বৈরথে বসে থাকি
তোমার আশায়৷ তুমি যেখানেই হাত রাখো
আমার উদগ্রীব চিত্র থাকে সেখানেই৷ আমি যেখানেই
হাত পাতি সেখানেই অসীম শূন্যতা, তুমি নেই৷