भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सफ़ेद-काला / शंख घोष / जयश्री पुरवार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 3 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंख घोष |अनुवादक=जयश्री पुरवार |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सड़क का वह खड़ूस बुड़ढा
जब आगे बढ़कर बोला — "मुझे चाहिए ।
नही देंगे ?
न देकर
किसे ठग रहे है महोदय ?"
और चारो ओर से सज्जन लोगों ने कहा —
"सावधान, हट जाइए
यह आदमी ज़रूर पीकर आया है
कुछ प्वाइण्ट"
तभी मेरे सामने काँपते हुये खड़ा हो जाता है
वाशिंगटन का एक और बहुत बेदम बूढ़ा
फटे कपड़े थे सीने पर और ढेले खा रहा था जो
पर फिर भी उँगली उठाकर कह रहा था — "सुनो,
आई एम ब्लैक
ओ यस, आई एम ब्लैक
बट माई वाइफ़ इज हृाइट !"