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हार हुई तो / रामकुमार कृषक

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हार हुई तो
प्रश्नों के सम्बोधन
उग आए
पराजित उत्तर बिसुराए !

दाएँ - बाएँ हाथ हो गए
आएँ - बाएँ पैर
कुछ ऐसे दिन लगे
कि अपने / अपने रहे न गैर,

यों टूटा आकाश
धरा के आँसू ढुर आए !

शंका - शंका बेंत हो गई
नंगी - नंगी पीठ
कुछ ऐसा बुन लिया
कथानक / पात्र हुए सब ढीठ ,

यों बैठा खग्रास
त्रास के परचम फहराए !

05 फ़रवरी 1975