भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये तमाशा भी अजबतर देखा / ज्ञान प्रकाश विवेक
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 8 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= ज्ञान प्रकाश विवेक }} Category:ग़ज़ल <poem> ये तमाशा भी...)
ये तमाशा भी अजबतर देखा
बर्फ़ पे धूप का बिस्तर देखा
लौट कर सारे सिपाही ख़ुश थे
सिर्फ़ ग़मगीन सिकंदर देखा
सेठ साहब ने ठहाके फेंके
मुफ़लिसों ने उन्हें चुन कर देखा
खोटे सिक्के की मिली भीख उसे
एक अंधे का मुकद्दर देखा
एक तिनके में खड़ा था जंगल
एक आँसू में समन्दर देखा
अजनबी शहर मेम इक बच्चे ने
जाते-जाते मुझे हँसकर देखा
ज़िन्दगी ! तू बड़ी मुश्किल थी मगर
तुझको हर हाल में जी कर देखा.