भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जोगिया मोर जगत सुखदायक / विद्यापति

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:08, 18 जुलाई 2022 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, दुःख ककरो नहिं देल

दुःख ककरो नहिं देल महादेव, दुःख ककरो नहिं देल
एही जोगिया के भाँग भुलैलक, धतुर खोआई धन लेल

आगे माई, कार्तिक गणपति दुई जन बालक, जन भरी के नहिं जान
तिनक अभरन किछओ न टिकइन, रतियक सन नहिं कान

आगे माई, सोना रूपा अनका सूत, अभरन अपने रुद्रक माल
अपना मँगलो किछ नै जुरलनी, अनका लै जंजाल

आगे माई, छन में हेरथी कोटिधन बकसथी, वाहि देवा नहिं थोर
भनहिं विद्यापति सुनू हे मनाइनि, इहो थिका दिगम्बर मोर