भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मा : दस / कृष्णकुमार ‘आशु’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:37, 26 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्णकुमार ‘आशु’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बीज जद धरती सूं
फूट्यौ बण'र अंकुर,
म्हानै सुणन लाग्या
मा री लोरी रा सुर
तिरसी धरा माथै
जद बरस्यौ मेह,
म्हूं भीज्यो
ममता रै नेह।
तपती लू में
अचाणचक चाली पून,
जद चिड़ी दूर सूं ल्या'र
बचियै नै दियो दाणौ
म्हानै याद आयो
मा रो लाड लडाणौ।