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ब्लैकमेलर-6 / वेणु गोपाल

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वह मुझे देखता है--
मेरे हाथ में काग़ज़ है।
मेरे हाथ ही काग़ज़ हैं।
मैं उन्हें पीछे कर लेता हूँ।
मैं कविताओं को पीछे कर लेता हूँ और
इस तरह उन्हें छुपा लेता हूँ।

वह मुझे देखता है--

मेरे गले पर उसकी पकड़ है।
उसकी उंगलियाँ ठंडी हैं। उसकी
पकड़ ठंडी है। लेकिन
लपटें-सी उठ रही हैं। गला
जला जा रहा है। वह
पूछ रहा है--कब तक?
मैं भी यही सवाल पूछ रहा हूँ
लेकिन ख़ुद से ही
कि 'कब तक?'

वह मुझे देखता है--

और मैं सोचता हूँ
--आत्महत्या के संदर्भ में
पहली बरसात की सोंधी महक का मतलब!
--स्कूटरों और कारों पर सवार फर्राटे
से गुज़र जाने वाले साहब लोगों ने
क्या अपनी नाक पोंछनी भी नहीं सीखी?
उनकी बीवियाँ किस क़दर
खिलखिला कर बिनाका हँसी हँस रही हैं
अदबदाकर
पतियों पर गिर रही हैं और
दनदना कर बच्चे जन र्ही हैं। सब
के सब स्वस्थ! तंदुरुस्त! खुश!
जबकि मेरी पत्नी
जबकि मेरी माँ
जबकि मेरे पिता
जबकि मेरा भाई
जबकि मेरी ज़मीन
और मेरा आकाश
और मेरी हवा, मेरी आग
और मैं
और बुक्का फाड़कर रोती हुई
मेरी ख़ामोशी!

वह मुझे देखता है--

मैं शराब पी रहा हूँ याने राजा दूबे के साथ हूँ
मैं कहानी सुन रहा हूँ याने महेन्द्र भल्ला की।
मैं कविताओं पर बहस कर रहा हूँ याने मणि मधुकर के घर।
मैं एक दोस्त में संपादक को
सिर उठाते पा रहा हूँ याने ओमप्रकाश निर्मल को।
और 'आख़िर तुम्हारा स्टैन्ड क्या है?'
सवाल सुनकर चौंक रहा हूँ और देख रहा हू`ं
--तेज़ राजेन्द्र सिंह का चेहरा मैं
उसे पहचान कर भी नहीं पहचानता।
क्योंकि उसकी आँखों में
वही बैठा है। वही ब्लैक मेलर!

वह मुझे देखता है--

जिरह शुरू होती है। कहाँ था? क्यों था
कहाँ हूँ? क्यों हूँ? --जवाब देने के नाम पर
मैं पत्नी को चूमने लगता हूँ। दोस्तों से
फ़िल्मों पर बातें करने लग जाता हूँ और
अजनबियों से शहर और मौसम पर बात

बदलते-बदलते मेरी आवाज़
दमे की मरीज़ की तरह हाँफने लगती है--
खाँसने लगती है-- बलग़म थूकने लगती है--
और आख़िर में जब थककर चूर हो जाती है तो

गिर जाती है। मैं

फिर से शराब और कहानी और कविता और
दोस्त सम्पादक के साथ हो जाता हू`म। बहस
करता हूँ। हालाँकि चुप रहता हूँ।
स्टैन्ड क्या है?' --सवाल के पीछे
कौन खड़ा है --जानत हूँ। नहीं देखता।
क्योंकि कुछ देर तो बचूँ-- किसी तरह--
उस ब्लैक मेलर से।

वह मुझे देखता है---