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ग़ैरों की दुनिया में / रामकुमार कृषक

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ग़ैरों की दुनिया में
सब्ज़बाग़ अपने हैं
यह भी तो बात कम नहीं !

कितना है भरम
भोर कह देना
खटिया की टूट
टूट सह लेना,

दुनिया की दौलत में
मेहनत है अपनी तो
यह भी सौगात कम नहीं !

कितना है धरम
चुप्प रह जाना
अपने को
अपने पर सह जाना,

दौलत के दर्शन में
दैहिकता अपनी तो
यह भी औक़ात कम नहीं !

कितना है पुन्न
सच्च गह लेना
भर–जीवन
मुश्किल को शह देना,

दर्शन की गंगा में
विष विशेष अपना तो
हम भी सुकरात कम नहीं !

17 जनवरी 1976