भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जहाँ से जो ख़ुद को / माखनलाल चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:03, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी }} जहाँ से जो ख़ुद को जुदा दे...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जहाँ से जो ख़ुद को

जुदा देखते हैं

ख़ुदी को मिटाकर

ख़ुदा देखते हैं ।

फटी चिन्धियाँ पहिने

भूखे भिखारी

फ़कत जानते हैं

तेरी इन्तज़ारी ।

बिलखते हुए भी

अलख जग रहा है

चिदानंद का

ध्यान-सा लग रहा है ।

तेरी बाट देखूँ

चने तो चुगा जा

हैं फैले हुए पर

उन्हें कर लगा जा ।

मैं तेरा ही हूँ इसकी

साखी दिला जा

ज़रा चुहचुहाहट

तो सुनने को आ जा ।

जो तु यों इछुड़ने-बिछुडने लगेगा

तो पिंजड़े का पंछी

भी उड़ने लगेगा ।