भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोग नाहक जुनून की ख़ातिर / राजेन्द्र तिवारी
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:03, 23 सितम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र तिवारी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लोग नाहक जुनून की ख़ातिर
रो रहे हैं सुकून की ख़ातिर
लाख रिश्तों की बर्फ़ जम जाये
ख़ून दौड़ेगा ख़ून की ख़ातिर
वो मेरे साथ-साथ है ऐसे
जनवरी जैसे जून की ख़ातिर
हाँकने में जुटे हैं चरवाहे
हम तो भेड़ें हैं ऊन की ख़ातिर
क्या ज़बानों को मार डालेंगे
बस इसी नून-मीम की ख़ातिर