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कुछ न माँग / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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1
कुछ न माँगा
दिनभर खटे थे
सूखी रोटियाँ
माँगी थीं साँझ ढले
धिक्कार मिली।
2
हदे होती हैं
प्यार-मनुहार की
तकरार की
बेशर्मी की न होता
ओर-छोर कोई भी।
(7-8-2011)