भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज की आँख / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 3 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सूरज की आँख
लहू में सनी ।
रिश्तों के हाथ
बाँचता है कौन
आहत -से घर -द्वार
हो गए मौन
बो गया कौन
यहाँ नागफनी।
पूछता नहीं अब
कोई भी कुशल
रात ही बची है
अँधेरों का हल
किरण की जान पर
अब आ बनी ।
सिमट गया उम्र-सा
एक-एक पल
छूटा है हाथ से
धुपहला आँचल
रहबर करने –
लगे राहज़नी ।
-0-