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साथी साथ ना देगा दुख भी / हरिवंशराय बच्चन

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काल छीनने दु:ख आता है
जब दु:ख भी प्रिय हो जाता है
नहीं चाहते जब हम दु:ख के बदले चिर सुख भी!
साथी साथ ना देगा दु:ख भी!

जब परवशता का कर अनुभव
अश्रु बहाना पड़ता नीरव
उसी विवशता से दुनिया में होना पड़ता है हंसमुख भी!
साथी साथ ना देगा दु:ख भी!

इसे कहूं कर्तव्य-सुघरता
या विरक्ति, या केवल जड़ता
भिन्न सुखों से, भिन्न दुखों से, होता है जीवन का रुख भी!
साथी साथ ना देगा दु:ख भी!