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मृत्यु / रसूल हम्ज़ातव / सुरेश सलिल
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मरने - मरने के क़रीब हैं जो
करते हैं महसूस
कि कुल पाँच मिनट की मोहलत है उनको,
भर उठते हैं दुष्टात्मा : भय से
लम्बी मंज़िल तय करनी हो उनको ज़ैसे !
ऐसे मूढ़ों की अड़ पर
जो यूँ ही हाँके जाते,
धैर्यवान गिरिवर भी,
मन से भारी हो हो जाते
झर - झर झरने लगतीं आँखें उनकी
दूर दिशा में
मानो मृत्यु उन्हीं को लेने आई
घोर निशा में !
—
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल