भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिखरल खोंता / मनोज भावुक

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:24, 27 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टुकी टुकी बाबूजी के बाग हो गइल
पतझड़ आइल अइसन दुलम साग हो गइल

चूल्हा-चूल्हा कइगो चूल्हा
धनकत सपनन के सब दूल्हा
भइल सपनवा लंगड़ा-लूल्हा
मनवा जब सभकर गरमाइल
उठल लहोक सभे अगिआइल
बाबूजी के घरवा आगे आग हो गइल
टुकी टुकी बाबूजी के बाग हो गइल

बिखरल खोंता माई के नू
भाई भोंके भाई के नू
जिउवा भइल कसाई के नू
मनवा जब सभकर बउराइल
बिषधर मने सभे बिखिआइल
बाबूजी के घरवा नागे नाग हो गइल
टुकी टुकी बाबूजी के बाग हो गइल

बाबूजी के हालत बाटे
दिनवो काटे, रतियो काटे
सभे अपना मन के बाटे
मनवा जब सभकर अरुआइल
काँव-काँव के बोल सुनाइल
बाबूजी के घरवा कागे काग हो गइल
टुकी टुकी बाबूजी के बाग हो गइल