भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अँधेरे में आवाज़ / अमरजीत कौंके

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:56, 11 दिसम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |अनुवादक= |संग्रह=आक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गहरा हो अँधेरा जब
आवाज़ तब देना जरूर
कहीं न कहीं कदम
ढूँढ ही लेंगे
अँधेरे का किनारा

ख़ामोशी हो जब चारों ओर
तो शांत मत रहना
चीखना पड़े तो चीखना
तोड़ देना सन्नाटे की परत
बाँध कर वक्त की पूँछ से पटाका

हवा रुके तो गरजना तूफ़ान की तरह
झील सोये तो उछालना कंकर
अमावस की हो रात
तो चाँद को पुकारना ज़रूर
जीवन रुके तो समझना
कि बदलाव की जरूरत है

गहरा हो अँधेरा जब
आवाज़ तब देना ज़रूर
कहीं न कहीं
कदम ढूँढ ही लेंगे
अँधेरे का किनारा।