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प्रेम / देवेन्द्र आर्य
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मैंने तुम्हार लिए छोड़ी थोड़ी पृथ्वी
तुमने मेरे लिए छोड़ दिया थोड़ा आकाश
हम दोनो ने मिल कर
एक-दूसरे के लिए पर्याप्त जगह बनाई।
अब हम साथ-साथ रह सकते थे
एक-दूसरे के बाहर
एक-दूसरे के भीतर साथ-साथ
उड़ सकते थे।