भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम ज्यों मेरी चाय / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:34, 25 दिसम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सारे दिन की
थकन मिटाते
तुम ज्यों मेरी चाय
बातों में
अक्सर परोसना
मीठा औ’ नमकीन
कितनी खुशियाँ
भर देते हैं
फ्लेश बैक के सीन
मुस्कानों का
तुम बन जाते
हो अक्सर पर्याय
कितना कुछ
हल कर देती है
अदरक जैसी बात
लौंग, इलायची
बन जाते हैं
प्रेम भरे जज्बात
जितनी भी
जो भी शिकायतें
हो तुम सबका न्याय
तुम बिन कहाँ
शाम भर पाती
इस मन में उल्लास
सच पूछो तो
मेरे होने
का तुम हो आभास
पल दो पल
जो साथ मिल रहे
वह ही मेरी आय