भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ढूँढता है आज साजन / बाबा बैद्यनाथ झा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:21, 17 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबा बैद्यनाथ झा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ढूँढता है आज साजन
दिल चुराकर मुस्कुराना
दूर जाकर फिर लजाना
दौड़कर जाता निकट तो
शीघ्रता से भाग जाना
याद आती है पुरानी
वह बरसता मेघ सावन
नयन काजल बांक चितवन
हृदय घायल और तन मन
प्यार में दोनों तड़पते
है मुझे वह याद उपवन
काश! वे दिन पुनः आते
दृश्य वैसा मन लुभावन
प्रेयसी से दूर जाना
अन्य से फिर दिल लगाना
बोझ-सा लगने लगा अब
लुप्त जीवन का तराना
तोड़ सारे बंधनों को
आ निभा दो प्रेम पावन