भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झील का तो वही किनारा है / बाबा बैद्यनाथ झा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:51, 22 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबा बैद्यनाथ झा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
झील का तो वही किनारा है
खूब बचपन जहाँ गुजारा है
पेड़ पौधे जवां अभी भी हैं
झूमता खुश वही नजारा है
हाथ पकड़ो चलो यहाँ घूमें
आज दिल का यही इशारा है
शर्म त्यागो चलो बढ़ें आगे
अब बहाना नहीं गवारा है
प्यार है तो इसे निभा ‘बाबा’
ज़िंदगी का यही सहारा है